वीय कै से बनता है ? वीय शर र क बहु त मू यवान धातु है । भोजन से वीय बनने क है ।
या बड़ ल बी
ी सु ुत ाचाय ने िलखा है ः रसा मे द या
ं ततो मांसं मांस ा मे दः
जायते ।
थः ततो म जा म जायाः शु
सं भ वः।।
जो भोजन पचता है , उसका पहले रस बनता है । पाँ च दन तक उसका पाचन होकर र
बनता है । पाँ च दन बाद र
से मांस , उसम से 5-5
दन के अं त र से मे द , मे द से
ह ड , ह ड से म जा और म जा से अं त म वीय बनता है । उसे 'रज' कहते ह। इस वै ािनक बताते ह लगभग 20
कार वीय बनने म कर ब 30
क 32 कलो भोजन से 800
ी म जो यह धातु बनती है
दन व 4 घ टे लग जाते ह।
ाम र
बनता है और 800
ाम र
से
ाम वीय बनता है । आकषक
य
व का कारण
वीय के सं य म से शर र म अदभु त आकषक श
उ प न होती है , जसे
ाचीन वै
ध वं त र ने 'ओज' कहा है । यह ओज मनु य को परम लाभ-आ मदशन कराने म सहायक बनता है । आप जहाँ - जहाँ भी कसी के जीवन म कु छ
वशे षता , चे ह रे पर ते ज , वाणी म बल ,
काय म उ साह पायगे , वहाँ समझो वीयर ण का ह चम कार है । एक
व थ मनु य एक
दन म 800
भोजन करे तो उसक कमाई लगभग 20 15
ाम भोजन के
हसाब से 40
ाम वीय होगी। मह ने
दन म 32 कलो
क कर ब 15
ाम हु ई और
ाम या इससे कु छ अिधक वीय एक बार के मै थ ुन म खच होता है । माली क कहानी एक माली ने अपना तन मन धन लगाकर कई
बगीचा तै य ार ब ढ़या इ
दन तक प र म करके एक सुं द र
कया , जसम भाँ ि त-भाँ ि त के मधुर सु ग ंध यु
तै य ार
कया।
फर उसने
(मोर ) म बहा दया। अरे ! इतने
पु प
खले । उन पु प से उसने
या कया , जानते हो ? उस इ दन के प र म से तै य ार
को एक गंद नाली
कये गये इ
को , जसक
सु ग ंध से उसका घर महकने वाला था , उसने नाली म बहा दया ! आप कहगे क 'वह माली बड़ा मू ख था , पागल था.....' मगर अपने -आप म ह झाँ क कर दख , उस माली को कह ं और
ढूँ ढने क ज रत नह ं है , हमम से कई लोग ऐसे ह माली ह। वीय बचपन से ले कर आज तक , यानी 15-20 वष म तै य ार होकर ओज प म शर र म
व मान रहकर ते ज , बल और
फू ित दे ता रहा। अभी भी जो कर ब 30
दन के प र म
क कमाई थी , उसे य ह सामा य आवे ग म आकर अ ववे कपू व क खच कर दे ना कहाँ क बु
मानी है !
या यह उस माली जै स ा ह कम नह ं है ? वह माली तो दो-चार बार यह भू ल
करने के बाद कसी के समझाने पर सं भ ल भी गया होगा ,
फर वह क वह भू ल नह ं
दोहरायी होगी परं तु आज तो कई लोग वह भू ल दोहराते रहते ह। अं त म प ाताप ह हाथ लगता है ।
णक सु ख के िलए
य
कामांध होकर बड़े उ साह से इस मै थ ुन पी कृ य म
पड़ता है परं तु कृ य पू र ा होते ह वह मु द जै स ा हो जाता है । होगा ह , उसे पता ह नह ं क सु ख तो नह ं िमला के वल सु खाभास हु आ परं तु उसम उसने 30- 40
दन क अपनी कमाई खो
द। यु व ाव था आने तक वीय सं च य होता है । वह शर र म ओज के वीय य से वह तो न
होता ह है , साथ ह अित मै थ ुन से ह
प म
थत रहता है ।
डय म से भी कु छ सफे द
अं श िनकलने लगता है , जससे यु व क अ यिधक कमजोर होकर नपुं स क भी बन जाते ह। फर वे
कसी के स मु ख आँ ख उठाकर भी नह ं दे ख पाते । उनका जीवन नारक य बन जाता
है । वीयर ण का इतना मह व होने के कारण ह कब मै थ ुन करना , कतनी बार करना आ द िनदश हमारे ऋ ष -मु ि नय ने शा सृ
म के िलए मै थ ुन ः एक
शर र से वीय- यय यह कोई
के िलए इसका वा त वक उपयोग है । यह सृ
सं त ानो प
ज र है ।
कृ ित म हर
कं तु इस
ले ना कहाँ क बु और
ाकृ ितक
ाकृ ितक कृ ित क
कार क वन पित व
वभावतः पायी जाती है । इसके वशीभू त होकर हर उसे िमलता है
म दे रखे ह।
णक सु ख के िलए
सं त ानो प
कससे करना , जीवन म
यव था यव था नह ं है ।
चलती रहे इसके िलए ा णवग म यह काम - वृ
ाणी मै थुन करता है व उसका सु ख भी
यव था को ह बार - बार
णक सु ख का आधार बना
मानी है ! पशु भी अपनी ऋतु के अनु स ार ह कामवृ
व थ रहते ह तो
म
वृ
या मनु य पशु व ग से भी गया बीता है ? पशु ओं म तो बु
वकिसत नह ं होता पर मनु य म तो उसका पू ण
होते ह त व
वकास होता है ।
आहारिन ाभयमै थ ुनं च सामा यमे त पशु ि भनराणाम ् । भोजन करना , भयभीत होना , मै थुन करना और सो जाना – ये तो पशु भी करते है ।
पशु - शर र म रहकर हम यह सब करते आये ह। अब मनु य-शर र िमला है , अब भी य द बु
ववे कपू व क अपने जीवन को नह ं चलाया व
णक सु ख के पीछे ह दौड़ते रहे तो
अपने मू ल ल य पर हम कै से पहु ँ च पायगे ? ोतः ऋ ष
साद , अ ू बर 2010 , पृ
सं या 24 , 25 अं क 214
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